पूर्वांचल सूर्य संवाददाता,रांची। झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र आज शुक्रवार से शुरू हो गया।स्पीकर डाॅक्टर रबीन्द्रनाथ महतो ने अपने संबोधन में कहा कि यह सत्र सात अगस्त तक आहूत है,जिसमें राज्य के प्रथम अनुपूरक बजट तथा राजकीय विधेयक प्रस्तुत किए जायेंगे।इस सत्र में कुल पांच बैठकें हैं,प्रत्येक दिन प्रश्नकाल है और सात अगस्त को गैर सरकारी संकल्प भी प्रस्तुत किए जायेंगे।चार अगस्त को वित्तीय वर्ष 2025-26 का पहला अनुपूरक बजट पेश किया जायेगा।
स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने कहा कि सपनों के सच होने का नाम है लोकतंत्र,जहां जनता की आवाज ही ईश्वर की वाणी है। स्पीकर महतो ने कहा कि इस सत्र में प्रथम अनुपूरक बजट प्रस्तुत किया जायेगा,जो न केवल राज्य की वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति करेगा, बल्कि सामाजिक कल्याण, संरचनागत विकास और शिक्षा-स्वास्थ्य क्षेत्र में नई गति भी देगा। साथ ही कई महत्वपूर्ण विधेयक भी प्रस्तुत किए जायेंगे।
स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने कहा कि मुझे विश्वास है कि इन विधेयकों पर गंभीर,रचनात्मक और सार्थक बहस होगी और इसे पारित किया जाएगा।रबींद्रनाथ महतो ने कहा कि हमारा दायित्व केवल कानून बनाना नहीं है, बल्कि जनता की आंकाक्षाओं और उम्मीदों का सम्मान करते हुए ऐसा वातावरण तैयार करना है, जिसमें स्वस्थ बहस, विचारविमर्श और रचनात्मक आलोचना हो, जैसा कि स्वतंत्र भारत की संसद के प्रथम स्पीकर ने कहा था।संसदीय मयार्दा और अनुशासन लोकतंत्र की आत्मा है। अतः हम सभी का कत्र्तव्य है कि हम मर्यादित आचरण और जिम्मेदारी के साथ इस सदन की गरिमा को बनाए रखें।
स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने कहा कि हमें स्मरण करना चाहिए कि यह सदन लोकतंत्र की उस महान परंपरा का अंग है, जिसकी नींव हमारे संविधान निमार्ताओं ने रखी थी। संविधान सभा में कहा गया था कि हमने इस संविधान के द्वारा अपने देश के लोगों को एक ऐसी व्यवस्था दी है, जिससे वे अपनी तकदीर स्वंय लिख सके। आज हमें यह देखना है कि हमारी हर कार्यवाही, हर निर्णय और हर चर्चा इसी भावना के अनुरूप हो। वर्ष 2025 वैश्विक लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।
स्पीकर महतो ने कहा कि इस वर्ष अनेक देशों में आम चुनाव संपन्न हुए और कई स्थानों पर लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती और जनता की भागीदारी का नया संदेश मिला। इन सबके बीच भारत ने न केवल अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं को जीवित रखा, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि विधिधता में एकता और संसदीय गरिमा हमारी लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति है।