यूपी में लालू महागठबंधन से दूर !

मुख्य कारण राजनीति से ज्यादा रिश्तेदारी!

16 Jul 2016 |  439

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी का बिगूल फूंक चुके हैं. शराबबंदी को मुद्दा बनाकर वो उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. लेकिन राजनीति के धुरंधर लालू प्रसाद यादव एक दम चुप्पी लगा कर बैठे हैं. उतर प्रदेश चुनाव पर कुछ बोलना नहीं चाहते हैं, उनके सामने बड़ी दुविधा की स्थिति हो गई है. एक तरफ बिहार में महागठबंधन की सफलता है तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में रिश्तेदारों की सरकार. आरजेडी समझ नहीं पा रही है कि वो करे तो क्या करे. अभी तक जो संकेत मिल रहे हैं उससे साफ है कि आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव अपने आप को चुनाव से दूर ही रखेंगे. इसका मुख्य कारण राजनीति से ज्यादा रिश्तेदारी है. हालांकि मुलायम ने इस रिश्ते के बावजूद बिहार के चुनाव में न सिर्फ महागठबंधन से रिश्ता तोड़ा बल्कि इनके खिलाफ चुनाव भी लड़ा. अभी तक जनता दल (यू) को जिन दलों से समझौते की उम्मीद थी उन दलों ने भी जेडीयू के आरमानों पर पानी फेर दिया. अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के जेडीयू में विलय की बात तय हो चुकी थी. लेकिन ऐन मौके पर अजीत सिंह ने मन बदल लिया. अपना दल से समझौते की बात तय हुई तो अपना दल ही दो भागों में बंट गया. एक धड़े का नेतृत्व अनुप्रिया पटेल तो दूसरे धड़े का नेतृत्व उसकी मां कृष्णा पटेल के हाथों में चली गई. अनुप्रिया पटेल एनडीए का हिस्सा बनकर केन्द्र में मंत्री भी बन गईं. अब जेडीयू इस उम्मीद में है. यूपी चुनाव में उसका समझौता कृष्णा पटेल वाले गुट से हो जाएगा. वर्तमान में जेडीयू का समझौता सिर्फ डॉ. अयूब की पार्टी पीस पार्टी से है. जेडीयू का मानना है कि जेडीयू यूपी चुनाव में समान विचारधारा वाली हर उस पार्टी को साथ लेकर चलेगी जो साथ आने को तैयार है. बिहार में जनता दल (यू) आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और बीजेपी को करारी शिकस्त दी. लेकिन महागठबंधन बने एक साल भी नहीं हुआ उतर प्रदेश में यह फॉर्मूला ध्वस्त होता दिखाई दे रहा है. हालांकि इसके पीछे केवल राजनीतिक महात्वाकांक्षा ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारी भी शामिल है. ऐसे में बिहार के महागबंधन की पार्टियों का उतर प्रदेश में अलग-अलग रास्ते हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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