बिहार का सिस्टम: लेक्चरर पहले एमए बाद में!

राज्य की शिक्षा व्यवस्था का एक और उदाहरण .

23 Jul 2016 |  1686

बिहार के शिक्षा व्यवस्था के वर्तमान प्रचलित घटनाओं टॉपर घोटाला, फर्जी डिग्री आदि में एक और कड़ी तब जुड़ गया जब पता चला कि आरा के कुंवर सिंह कॉलेज में पढ़ाने वाला शिक्षक 2005 से नियुक्ति पाकर वेतन उठा रहें हैं जबकि उन्होंने एमए पास किया 2006 में किया है. यही नहीं शिक्षक महाशय नौकरी कर रहे निजी स्कूल में, लेकिन वेतन उठा रहे कॉलेज से। कॉलेज में दो सत्रों में एक करोड़ अनुदान राशि की बंदरबांट हुई है। कॉलेज में सृजित पदों से अधिक शिक्षक व कर्मचारियों को राशि दी गई। निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने इस मामले में कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य राम ओझा, कार्यरत प्राचार्य मानिक तिवारी, कॉलेज सचिव त्रिभुवन सिंह व सुरेन्द्र सिंह और कार्यालय सहायक अवधेश कुमार सिंह के खिलाफ निगरानी थाने में प्राथमिकी दर्ज की है। मामले की जांच डीएसपी अमरीश कुमार सिंह ने की। निगरानी एसपी शिव कुमार झा ने बताया कि गुरुवार को इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई। शिक्षकों का रिकॉर्ड भी नहीं निगरानी सूत्रों के अनुसार कॉलेज में कार्यरत इंद्रजीत कुमार सिंह ने 2006 में एमए की परीक्षा पास की थी, लेकिन कॉलेज में उनकी नियुक्ति 2005 में ही इतिहास के व्याख्याता के पद पर कर दी गई। आरोप है कि वे 19 जून 2007 से एक जुलाई 2008 तक सरस्वती विद्या मंदिर श्रीकृष्ण नगर औरंगाबाद में आचार्य के पद पर थे। 5 जुलाई 2008 को वे वहां से विरमित होकर सरस्वती विद्या मंदिर बक्सर आए। लेकिन इस अवधि में इंद्रजीत ने कुंवर सिंह कॉलेज आरा से भी अनुदान राशि ली। कॉलेज के रिकार्ड में किसी भी शिक्षक की योग्यता, डिग्री व पिता के नाम व पता का विस्तृत विवरण नहीं है। एक ही आधारभूत संरचना पर इंटर व स्नातक के लिए मान्यता मिली है। छात्रों का कोई विवरण नहीं आरा के कुंवर सिंह कॉलेज में कार्यरत दिखाई गई शांति देवी किस विषय की शिक्षिका हैं, इसका कोई रिकॉर्ड कॉलेज में नहीं है, लेकिन अनुदान राशि उन्हें मिल गई। कॉलेज में नामांकित व उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं का भी विवरण नहीं है। कॉलेज को सत्र 2006-08 में 50 लाख और सत्र 2007-09 में 49 लाख 99 हजार 698 रुपए की अनुदान राशि मिली। पद हैं 15, अनुदान 34 को सत्र 2006- 08 में 34 शिक्षकों के बीच अनुदान राशि बांटी गई, जबकि कॉलेज में शिक्षक के 15 सृजित पद हैं। 15 ऐसे शिक्षकों को अनुदान राशि मिली जो इसके हकदार नहीं थे। कर्मचारियों के 15 पद सृजित हैं, लेकिन 32 के बीच अनुदान राशि बांटी गई। सत्र 2007-09 में राशि प्राचार्य सहित 34 व्याख्याता के बीच बांटी गई, जबकि स्वीकृत पद सिर्फ 19 हैं।

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