मवेशियों के स्वास्थ्य के लिए चढ़ेगी मुर्गे की बलि,सजेंगे गाय-बैल,गाय-बैलों को सजाने की अनोखी परंपरा,ग्रामीण इलाकों में सदियों से चली आ रही प्रथा

मवेशियों के स्वास्थ्य के लिए चढ़ेगी मुर्गे की बलि,सजेंगे गाय-बैल,गाय-बैलों को सजाने की अनोखी परंपरा,ग्रामीण इलाकों में सदियों से चली आ रही प्रथा

18 Oct 2025 |  24

 

चक्रधरपुर।झारखंड में मवेशियों को स्वस्थ रखने के लिए एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है।गाय-बैलों को सजाया जाता है और मुर्गों की बलि दी जाती है।ग्रामीण इलाकों में यह प्रथा सदियों से चली आ रही है।चक्रधरपुर अनुमंडल के ग्रामीण क्षेत्रों में 19 से 23 अक्टूबर तक आदिम जनजातियों का परंपरागत वंदना उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से कृषक समुदाय और पशुपालन से जुड़े परिवारों द्वारा मनाया जाता है,जिसमें खेती और पशुधन से जुड़े सभी कार्य पूर्णतः बंद रहते हैं।

 

इस उत्सव की शुरुआत 19 अक्टूबर को काचा-दिइआ नेग से होगी,जिसमें कुलही दुआरी में शुद्ध गाय के घी से दीप प्रज्वलित कर गाय-बैलों का स्वागत किया जाएगा। 20 अक्टूबर को कार्तिक अमावस्या के दिन गोट पूजा होगी।झारखंड के ग्रामीण इलाकों में लोक पर्व वंदना की तैयारी जोर-शोर से जारी है।यह परंपरागत पर्व मवेशियों के सम्मान, स्वास्थ्य और समृद्धि से जुड़ा है,जिसमें कई अनोखी और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध परंपराएं निभाई जाती हैं।

 

तेल से होता है मवेशियों का स्वागत,मांसाहार रहता है वर्जित

 

वंदना पर्व शुरू होने से तीन,पांच या सात दिन पूर्व गांवों में गाय-बैलों के सींगों पर सरसों का तेल लगाकर उनका स्वागत किया जाता है।घरों में मांसाहारी भोजन पूरी तरह निषेध होता है।मान्यता है कि इस दौरान मांस का सेवन करने से मवेशियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

 

गोट पूजा: अंडा फोड़ने वाले को मिलता है सम्मान

 

हर दिन तेल लगाने की रस्म के बाद सामूहिक रूप से गोट पूजा होती है। इस पूजा में गांव के बाहर एक अंडा रखकर पूजा की जाती है,फिर सभी मवेशियों को उसके ऊपर से पार कराया जाता है,जिस व्यक्ति का बैल अंडा फोड़ता है, उसे गांव वाले कंधे पर उठाकर सम्मानपूर्वक उसके घर तक पहुंचाते हैं। वहीं से धींगवानी नृत्य और गीतों का सिलसिला शुरू होता है, जो घर-घर जाकर गाया और नाचा जाता है।

 

अमावस्या की रात: धींगवानी और रंगों की रास

 

गोट पूजा के बाद अमावस्या की रात भर धींगवानी का कार्यक्रम चलता है। इस दौरान ग्रामीण अबीर और रंगों के साथ उत्सव मनाते हैं। अगली सुबह गोहाल पूजा होती है, जिसमें हर गोहाल में मुर्गे और मुर्गी की बलि देकर मवेशियों के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना की जाती है।

 

अल्पना से स्वागत,बैलों का नृत्य

 

संध्या होते ही आंगनों में रंग-बिरंगे रंगों से अल्पना सजाई जाती है।परंपरा के अनुसार सबसे पहले गाय को ही अल्पना में प्रवेश कराया जाता है,उसके बाद ही अन्य मवेशियों का स्वागत होता है।अल्पना में प्रवेश से पूर्व गायों को धान की पौधों से बने मोढ़ और दीप दिखाकर अभिनंदन किया जाता है। गाय-बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है और उनका नृत्य भी कराया जाता है। ढोल-नगाड़ों और गीतों की धुन पर बैल लोगों के साथ नाचते हैं, जो इस पर्व की विशेष पहचान है।

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