अगड़े हों या दलित, गालियाँ स्त्रियों को ही सहना है..

‘देवी”’ मायावती जी के कार्यकर्ता निर्लजता में दयाशंकर से भी आगे निकल गए..

22 Jul 2016 |  1953

.यूपी में बीजेपी के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह द्वारा बहन मायावती को वेश्या से तुलना देश में भूचाल ला दिया. इसमें राजनितिक प्रतिद्वंदिता के घटिया चरित्र को सामने लाया वहीँ पितृसत्ता का संवेदनहीन रूप भी दिखा. बहन मायावती दलित हैं यह तथ्य है पर इससे भी बड़ा तथ्य है कि पहले वो एक स्त्री हैं. स्वयं बहन जी ने इस तथ्य को स्वीकार किया है और कहा कि ‘लोग उन्हें देवी मानते हैं’. देवी कोई भी हो,स्त्री ही है. यह अलग बात है कि देश में कुछ बुद्धिजीवी जो महिषासुर दिवस मनाते हैं देवी दुर्गा को वेश्या रूप में प्रस्तुत करते है. पर ध्यान देने की बात है कि वो कोई भी हों, पुरुष ही हैं. बहन जी दलितों की नेत्री हैं ऐसा दलित समाज मानता है पर मै व्यक्तिगत तौर पर मायावती जी को इस देश के उन सफलतम नेताओं की सूची में रखता हूँ जो सभी वेर्गों में लोकप्रिय रहे हैं. अच्छी बात रही कि सभी राजनीतिक दलों और हर वर्ग ने इस तरह के घटनाओं की एक स्वर से निंदा की और दयाशंकर को उसकी पार्टी ने निष्काशित भी कर दिया. अब कानून को चाहिये की ऐसे लोगों पर रहम न दिखाते हुए सख्त कारवाई करे. पर वाकया यही खत्म नहीं हो जाता. चूँकि मौसम चुनावों का है और बयाँ भी इसी परिप्रेक्ष्य में दिया गया था सो सभी पार्टियाँ जहाँ तक होगा इसे अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास करेंगे ही और इस तरह यह कुछ और दिन मीडिया में ख़बरों में चलता रहेगा. अब ये दलितों पर है कि किनका सुर और ताल उनकों ज्यादा भाता है? हालांकि यह मसला दलितों का था नहीं यह तो महिलाओं का मसला था. परन्तु शायद आधी आबादी की यही त्रासदी है कि वो स्त्री होकर कभी एक नहीं हो पायी या शायद पितृसत्ता ने उसे एक होने ही नहीं दिया. वो स्त्री होने से पहले स्वर्ण बना दी जाति है, कभी दलित, कभी किसी राजनीतिक दल विशेष की तो कभी किसी धर्म विशेष की. और यहीं से उनकी लड़ाई कमजोर पड़ती जाती है... फिर कोई दयाशंकर मायावती जैसी सख्सियत को गाली देता है तो उसके उलट मायावती की पार्टी और शायद जाति समर्थक दयाशंकर की बेटी और पत्नी को सरेआम गालियाँ देते हैं और उनकी रेप करने का नारा लगाते हैं. दयाशंकर की बेटी और पत्नी यहाँ बहन मायावती के लिये भी स्त्री नहीं रह जाती क्यूंकि उन्होंने अपने समर्थकों से ऐसा ना करने के लिये कभी नहीं कहा. बहन जी ने तब भी कुछ नहीं कहा जब उनके समर्थक होने का दावा करने वाले देवी दुर्गा को वेश्या कहकर उत्सव मनाते रहें. भारत ही नहीं यह पूरी दुनिया के महिलाओं की त्रासदी रही है कि वो पुरुषों के स्त्रीविरोधी सोंच को लेकर कभी एक नहीं हो पायीं. महिला आन्दोलन के नाम पर उन्होंने कानूनी तौर पर जरूर कुछ सफलताएं हासिल की है पर जिस पितृसत्ता के खिलाफ उनकी लड़ाई शुरू हुई थी वो कई मायनों में उसी का हथियार बन कर रह गयीं. बहन जी को गाली देने और उसके बाद की प्रतिक्रिया इसका जीता-जागता उदाहरण है.