मथुरा में हिंसा के पीछे कौन?

इस तरह की संगठित हिंसा धार्मिक, राजनितिक और प्रशासनिक असफलता को नहीं दर्शाता?

03 Jun 2016 |  720

मथुरा के जवाहर पार्क की करीब 100 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जेि को हटाने पहुंची पुलिस टीम और कब्जेहधारियों के बीच भीषण संघर्ष में एक एसपी, एस.एच.ओ समेत 20 से ज्यादा लोगों की मौत ने कई सवालों को जन्म दिया है. खबर है कि करीब 3000 अतिक्रमणकारियों ने पुलिस दल के मौके पर पहुंचने पर उस पर पथराव और फायरिंग की. पुलिस टीम पर हमला करने वाले अतिक्रमणकारी बाबा जयगुरू देव के अनुयायी हैं और आजाद भारत विधिक वैचारिक क्रांति सत्याग्रही संगठन के सदस्य बताते हैं .इनकी मांग थी कि राष्ट्रपति, पीएम के चुनाव रद्द हो और मौजूदा मुद्रा को भी बंद किया जाए. सवाल है कि इस तरह के सोंच रखने वाले व्यक्ति या समूह को जिसे भारतीय संविधान में ही आस्था नहीं हो पहले से ही कानून के दायरे में क्यूँ नहीं लाया गया? क्या ऐसी आक्रामक और असंवैधानिक विचारों को जिस धार्मिक या राजनीतिक पंथ से मदद मिलती रही उसे इस हिंसा के प्रति जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? इस देश में पहले भी धार्मिक, सामजिक या राजनीतिक कट्टरता ने ऐसे ही कई हिंसक परिणामों को अंजाम दिया है फिर भी क़ानून समय रहते इन्हें क्यूँ नहीं रोक पाता? निसन्देह इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार सता के शीर्ष पर बैठे वो लोग हैं जो ऐसे व्यक्ति और समूहों को अपने फायदे के लिए गाहे बजाहे इस्तेमाल करते रहतें हैं और इनके खिलाफ किसी भी कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रिया को रोकते रहते हैं. इस मामले में खुलासा हुआ है कि मथुरा के डीएम को इस ऑपरेशन के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. क्योंकि, वो चाहते थे कि शनिवार को यह कार्रवाई की जाए. इसके साथ ही जिले के एसएसपी और डीएम के बीच आपसी तालमेल की कमी का मामला भी सामने आया है. बताया जा रहा है कि सिटी एसपी अपनी टीम के साथ मौके पर मुआयना और रेकी करने गए थे. ऐसे में यहाँ पर एक बड़ी प्राशाससनिक लापरवाही भी सामने आती है जिसकी बड़े पैमाने पर जांच होनी चाहिए.

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